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राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ का मकसद नहीं होगा पूरा, कानूनी पचड़े में फंस गया है US इकोनॉमी का भविष्य

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मनमाने ढंग से दुनिया के बड़े देशों पर टैरिफ का चाबुक चलाया. सत्ता में आने बाद से ही उन्होंने अपने फैसले से न केवल दुनिया को चौंकाया बल्कि ग्लोबल इकोनॉमी को भी खतरे में डाल दिया. लेकिन ट्रंप का मकसद पूरा होता नहीं दिख रहा है. क्योंकि ट्रंप ने देश के बढ़ते घाटे को कम करने के लिए अग्रेसिव नीतियों को अपनाया था. जिसे कोर्ट ने भी सही नहीं ठहराया. टैरिफ का फैसला बदलने को लेकर कानूनी खतरा मंडरा रहा है. जिससे देश की वित्तीय स्थिति और भी खराब हो जाएगी. अमेरिका का ट्रेड डिफिसिट बढ़ता चला जाएगा.

ट्रंप और उनके टॉप सहयोगी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट का कहना है कि रिपब्लिकन की टैक्स कटौती, कम रेगुलेशन और कंपनियों व विदेशी देशों के बड़े निवेश से इकोनॉमी में तेजी आएगी. इससे फेडरल रेवेन्यू बढ़ेगा और आने वाले सालों में सरकार को कम उधार लेना पड़ेगा. लेकिन कई इकोनॉमिस्ट्स को इस पर शक है. फिर भी ज्यादातर मानते हैं कि टैरिफ बढ़ने से ट्रेजरी डिपार्टमेंट को नया पैसा मिल रहा है.

कस्टम ड्यूटी में बढ़ोतरी

ट्रेजरी के डेटा से पता चला कि 2025 के फाइनेंशियल ईयर में कस्टम ड्यूटीज 165 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई, जो पिछले साल से 95 बिलियन ज्यादा है. ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स का कहना है कि ये बढ़ोतरी ट्रंप के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत लगाए टैरिफ की वजह से है. लेकिन 29 अगस्त को एक फेडरल अपील कोर्ट ने इस कदम की वैधता पर सवाल उठाया है. सुप्रीम कोर्ट इस केस को देखेगा लेकिन अगर फैसला ट्रंप के खिलाफ गया, तो बेसेंट ने चेतावनी दी है कि सरकार को बहुत सारा पैसा रिफंड करना पड़ सकता है. फिर भी बेसेंट को भरोसा है कि कोर्ट व्हाइट हाउस के पक्ष में फैसला देगा.

अमेरिका के लिए चुनौती

इस साल का एक्स्ट्रा टैरिफ रेवेन्यू अभी भी बजट घाटे 2 ट्रिलियन डॉलर से कम है. लेकिन इकोनॉमिस्ट्स मानते हैं कि टैरिफ से सालाना 300 बिलियन डॉलर या उससे ज्यादा आ सकता है, जो अमेरिकी GDP का 1% है. चूंकि डेफिसिट GDP के 6% से ज्यादा है, ये रकम बेसेंट के 3% डेफिसिट टारगेट की ओर बढ़ने में मदद कर सकती है. अगर टैरिफ हट गए, तो बॉन्ड इनवेस्टर्स और इकोनॉमिस्ट्स को सिर्फ ग्रोथ और प्रोडक्टिविटी के आशावादी अनुमानों पर निर्भर रहना होगा. राइटसन ICAP के इकोनॉमिस्ट लू क्रैंडल ने कहा कि ये एक वाइल्ड कार्ड है, जिससे बाद में निपटना होगा. अगर कोर्ट ट्रेजरी के खिलाफ फैसला देता है और डेफिसिट बढ़ने से बचना है, तो कुछ नई पॉलिसी लानी होगी. फिलहाल, बॉन्ड इनवेस्टर्स फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं पर ध्यान दे रहे हैं. साथ ही ट्रंप की टीम धारा 232 और 301 जैसे दूसरे ऑथोरिटीज का इस्तेमाल करके टैरिफ सिस्टम को री-इंवेंट कर सकती है.

वोल्फ रिसर्च के टोबिन मार्कस ने कहा कि बॉन्ड मार्केट्स को टैरिफ रिफंड की लागत को इग्नोर करना चाहिए. हमें उम्मीद है कि अगर ट्रंप कोर्ट में हार गए, तो वो दूसरे तरीकों से टैरिफ फिर से लागू करेंगे. बेसेंट ने फॉक्स बिजनेस पर कहा कि टैरिफ का बैकअप प्लान ज्यादा जटिल होगा और राष्ट्रपति के ऑप्शंस को सीमित कर सकता है. इससे बिजनेस और इकोनॉमी पर अनसर्टेनिटी बढ़ सकती है, जिससे लागत बढ़ेगी, ग्रोथ धीमी होगी और लेबर मार्केट कमजोर हो सकता है. इससे डेफिसिट और बढ़ सकता है.

अमेरिका को होगा भारी नुकसान

इलिनोइस की कंपनी हैंड2माइंड की मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव एलाना रफमैन टैरिफ चेंजेस से परेशान हैं. उनकी कंपनी ने इस साल 5.5 मिलियन डॉलर टैरिफ में दिए, जबकि 2024 में ये सिर्फ 2.3 मिलियन था. अगर कंपनी ने प्रोडक्शन नहीं रोका होता, तो ये बिल और ज्यादा होता. येल बजट लैब का अनुमान है कि अगर IEEPA टैरिफ हटाए गए, तो 10 साल में 1.5 ट्रिलियन डॉलर का रेवेन्यू कम हो जाएगा. अगर सुप्रीम कोर्ट टैरिफ को अमान्य करता है, तो रिफंड की जरूरत बॉन्ड इनवेस्टर्स को अमेरिका के फिस्कल प्रॉब्लम्स की याद दिला सकती है.

By Rocky

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